Monday, December 16, 2024
Todays Panchang
Total Temples : 5,199
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Monday, 16-12-2024 11:28 AM Todays Panchang Total Temples : 5,199
   

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Shakti Peetha
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Maha Shakti Peetha
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Adi Shakti Peetha
12
Jyotirling
108
Divya Desam
8
Ganesh
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Dham India
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Dham Uttarakhand
7
Saptapuri / Mokshapuri
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India
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Dham
Uttarakhand
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Saptapuri
/ Mokshapuri
Chhattisgarh

Bohari Mata mandir Tor, Chhattisgarh

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कोल्हान नदी तट पर स्थित बोहरही धाम की गाथा

तिल्दा नेवरा से रायपुर मार्ग पर विराजे माता बोहरही व ठाकुर देव राजधानी रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ विधान सभा भवन से उत्तर दिशा में करीब 10 कि.मी. की दूरी पर एक प्राकृतिक और मनोरम स्थल है, जिसे हम बोहरही दाई के नाम से जानते हैं। कोल्हान नदी के तट पर बसा यह स्थल ग्राम पथरी के अंतर्गत आता है, लेकिन ग्राम नगरगाँव, ग्राम टोर और ग्राम तरेसर भी इसके उतने ही निकट हैं, जितना पथरी है। इसलिए इसे सभी ग्रामवासी अपने ग्राम के अंतर्गत आने वाले स्थल के रूप में मानते हैं, और उसी तरह इसके प्रति आस्था भी रखते हैं।
बोहरही दाई के इस स्थल पर आने और स्थापित होने के संबंध में बड़ी रोचक कथा बताई जाती है। ऐसा कहते हैं कि बोहरही दाई किसी अन्य ग्राम से रूठकर नदी मार्ग से बहकर यहाँ आ गई थीं, और ग्राम पथरी के एक संपन्न किसान को स्वप्न देकर कि मैं यहां पर हूं, यदि तुम चाहते हो कि मैं यहीं रहूं तो मेरे रहने के लिए कोई मंदिर आदि का निर्माण करो।
उक्त कृषक ने अपने स्वप्न की बात अन्य ग्रामवासियों को बताई, जिस पर ग्रामवासियों ने उक्त स्थल का परीक्षण करने का निर्णय लिया।
जब ग्रामवासी वहाँ पर जाकर देखे, तो कोल्हान नदी के किनारे स्वप्न में दिखाए गये स्थल पर एक प्रतिमा मिली जिसे ग्रामवासियों के कहने पर नदी से कुछ दूरी पर स्थापित किया गया। इसे ही आज बोहरही दाई के नाम पर लोग जानते हैं। बोहरही नाम के संबंध में यह बताया बताया जाता है कि वह देवी नदी में बहकर आई थी, जिसे स्थानीय छत्तीसगढ़ी भाषा में “बोहाकर” आना कहा जाता है, इसीलिए इसका नामकरण “बोहरही” हो गया।
मुंबई-हावड़ा रेल मार्ग पर स्थित बोहरही में तब केवल ग्रामवासियों द्वारा नदी स्थल से लाकर बनाया गया एक छोटा सा चबुतरानुमा मंदिर ही था। उसके पश्चात एक छोटा शिव मंदिर रेल्वे वालों के द्वारा बनवाया गया।
इसके संबंध में बताया जाता है कि अंगरेजों के शासन काल में जब मुंबई-हावड़ा रेल मार्ग का निर्माण कार्य चल रहा था, तब पास से बहने वाले एक छोटे नाले पर पुलिया का निर्माण कार्य बार-बार बाधित हो रहा था। आधा बनता फिर गिर जाता.
बताते हैं कि पुल के उस निमाण कार्य को एक बंगाली इंजीनियर की देखरेख में किया जा रहा था। एक रात उस इंजीनियर को स्वप्न आया कि बोहरही दाई के मंदिर के पास रेल विभाग के द्वारा एक अन्य मंदिर का निर्माण करवाया जाए तो पुल का निर्माण कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाएगा। स्वप्न की बात पर विश्वास करके उक्त बंगाली इंजीनियर ने बोहरही दाई के ठीक दाहिने भाग में तब एक शिव जी का मंदिर बनवाया, तब जाकर उक्त पुल का निर्माण कार्य पूर्ण हो पाया। उस पुलिया को आज भी लोग उस बंगाली इंजीनियर की स्मृति में बंगाली पुलिया ही कहते हैं।
बोहरही धाम आज पूरी तरह से एक संपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। इस स्थल पर आज विभिन्न समाज के लोगों के द्वारा कई मंदिरों का निर्माण करवाया जा चुका है। अब यह पर्यटन का भी केन्द्र बन गया है, जहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं के साथ ही साथ घुमने-फिरने के शौकिन लोगों की भीड़ लगी रहती है। यहां प्रतिवर्ष महाशिव रात्रि के अवसर पर तीन दिनों का विशाल मेला भी भरने लगा है।
बोहरही में अब दोनों नवरात्रि के अवसर पर मनोकामना ज्योति भी प्रज्वलित की जाती है. कई श्रद्धालुओं के द्वारा अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर बलि भी दी जाती है. यहाँ प्रचलित बलिप्रथा को बंद करवाने के लिए कुछ समाजसेवी लोग एकाद बार रैली आदि निकाल कर जनजागण का कार्य भी किये थे, लेकिन लोग अपनी आस्था के चलते अभी भी इस प्रथा को जीवित रखे हुए हैं.
तिल्दा नेवरा के समीप होने की वजह से हजारों श्रद्धालुओं प्रतिदिन यहां जाते हैं।

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