Monday, December 16, 2024
Todays Panchang
Total Temples : 5,202
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Monday, 16-12-2024 02:09 PM Todays Panchang Total Temples : 5,202
   

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Shakti Peetha
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Adi Shakti Peetha
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India
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Uttarakhand
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Saptapuri
/ Mokshapuri
Chhattisgarh

Shree Bilai Mata Mandir Dhamtari, Chhattisgarh

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धमतरी में स्थित बिलाई माता मंदिर के बारे में
बिलाई माता मंदिर
धमतरी में स्थित बिलाई माता मंदिर जिसे विंध्यवासिनी मंदिर भी कहा जाता है, यह एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह एक प्राचीन मंदिर है जो नवरात्रि और दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान भक्तों को भारी संख्या में अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर को राज्य के पाँच शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी पहले के समय की स्थापत्य कला को दर्शाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, मां विंध्यवासिनी की मूर्ति जमीन से निकली है जो धीरे-धीरे अभी भी उठ रही है।

धमतरी में बिलई माता मंदिर छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में नए बस स्टैंड से 2 किलोमीटर दूर माता विंध्यवासिनी देवी को समर्पित एक मंदिर है। इसे स्वयं-भू विंध्यवासिनी माता कहते हैं स्थानीय लोगों की मान्यता है की मंदिर में स्थित मूर्ति धरती चीरकर निकली है जो अभी भी लगातार उपर की और आ रही है।

बिलई माता मंदिर में केवल एक घी की ज्योत जलाई जाती है। नवरात्रि के दौरान गर्भगृह में दो ज्योत जलाई जाती हैं। मंदिर की प्रसिद्धि दूर दूर तक विदशों में भी फैली हुई है, यहां दूसरे देश के लोग भी ज्योत जलाने के लिए पहुंचते हैं।

माता के दरबार में हमेशा ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रि के दौरान लाखों की संख्या में भक्त माता का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर जाते हैं। ऐसा माना जाता है की सच्चे मन से की गई कोई भी मनोकामना माँ अवश्य पूर्ण करती है।

बिलाई माता मंदिर में बलि प्रथा की कहानी
विंध्यवासिनी मंदिर में सालों पहले नवरात्रि के दौरान 108 बकरों की बलि दी जाती थी। राजा नरहर देव के शासनकाल से बकरों की बलि प्रथा की शुरुवात की गई थी। वर्ष 1938 के आसपास इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया तब से लेकर अब तक बलि के रूप कच्चे कद्दू को चढ़ाया जाता है

बिलाई माता मंदिर से सम्बंधित पौराणिक कथा
स्थानीय लोगों में प्रचलित कथाओं के अनुसार वर्तमान में जहां आज देवी का मंदिर है आदिकाल में वहां घनघोर जंगल हुआ करता था। राजा मांडलिक अपने सैनिकों के साथ एक बार इसी जंगल में गए। इस स्थान पर आते ही घोड़े ठिठक गए। इसके चलते राजा को वापस लौटना पड़ा। दूसरे दिन भी यही घटना हुई। घोड़े उसी स्थान पर आकर रुक गए, तब राजा ने सैनिकों को जंगल में और अंदर जाकर देखने का आदेश दिया। सैनिकों ने जब जंगल में खोजबीन की तो उन्होंने देखा कि एक पत्थर के चारों ओर जंगली बिल्लियां बैठी हैं।

राजा को इसकी सूचना दी गई। राजा ने बिल्लियों को भगाकर उस पत्थर को प्राप्त करने का आदेश दिया। चमकदार व आकर्षक पत्थर जमीन के अंदर तक धंसा हुआ था। काफी प्रयास के बाद भी पत्थर बाहर नहीं निकला। इस दौरान उस स्थान से जलधारा निकलना प्रारंभ हो गया। खुदाई को दूसरे दिन के लिए रोक दिया गया। उसी रात्रि देवी मॉं ने राजा के सपने में आई और कहा की पत्थर को उस स्थान से न निकालें और पूजा पाठ करना शुरू करें जो लोगों के लिए कल्याणकारी होगा।

इसके बाद राजा ने उस स्थान पर चबूतरे का निर्माण कराकर देवी की स्थापना करा दी। कालांतर में इसे मंदिर का स्वरूप दे दिया गया।लोगों का ऐसा मानना है कि मंदिर में पत्थर अधिक ऊपर नहीं आया था। प्रतिष्ठा के बाद देवी की मूर्ति स्वयं ऊपर उठी।

इस मंदिर को बिलाई माता मंदिर क्यों कहा जाता है?
इस मंदिर को बिलाई माता मंदिर कहे जाने के पीछे भी रोचक कहानी है जब पहली बार राजा के सैनिकों ने इस मूर्ति को देखा था तब उसके आसपास काली बिल्लियाँ देखी गई थीं इनके अलावा मूर्ति भी काली थी इसलिए लोग इसे बिलाईमाता कहने लगे जो आज भी प्रचलन में है।

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