Monday, December 16, 2024
Todays Panchang
Total Temples : 5,199
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Monday, 16-12-2024 12:14 PM Todays Panchang Total Temples : 5,199
   

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Shakti Peetha
18
Maha Shakti Peetha
4
Adi Shakti Peetha
12
Jyotirling
108
Divya Desam
8
Ganesh
4
Dham India
4
Dham Uttarakhand
7
Saptapuri / Mokshapuri
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Jyotirling
 
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Divya
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India
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Uttarakhand
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Saptapuri
/ Mokshapuri
Chhattisgarh

Sri Jagannath Mandir Raipur Chhattisgarh

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Jagannath Temple Gayatri Nagar Raipur गायत्री नगर का जगन्नाथ मंदिर छत्तीसगढ़ का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का शुभारंभ छत्तीसगढ़ के मुखिया (राज्यपाल और मुख्यमंत्री) सोने के झाड़ू से मार्ग की सफाई करने की रस्म निभाकर करते हैं। इसे छेरा-पहरा रस्म के नाम से जाना जाता है।
गर्भगृह से भगवान की मूर्ति को सिर पर रखकर बाहर तक लाने में मुख्यमंत्री के अलावा अन्य मंत्रीगणों को भी भगवान की सेवा करने का अवसर मिलता है। ऐसे क्षण को देखने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। पुलिस कर्मियों की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद मंदिर में पैर रखने को भी जगह बाकी नहीं बचती।
श्री जगन्नाथ मंदिर समिति के संस्थापक अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा बताते हैं कि साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुगा था उस दौरान ही मंदिर की आधारशिला रखी गई थी। छत्तीसगढ़ बनने के तीन साल बाद 2003 में मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ।
ओड़िसा से नीम की लकड़ी से बनाई गई मूर्तियों को लाया गया था। पुरी मूल मंदिर के विद्वान आचार्यों ने विधिवत भगवान जगन्नाथ, भैया बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा संपन्न कराई थी।
रथयात्रा उत्सव के दौरान मनमोहक श्रृंगार करने के लिए पुरी से ही पोशाक और गहने मंगवाए जाते हैं। पुरी मंदिर में जिस तरह भगवान का श्रृंगार होता है उसी तर्ज पर श्रृंगार किया जाता है।

ओडिसा के पुरी स्थित मंदिर में जिस तरह तीन अलग-अलग रथ पर भगवान को उनके बड़े भैया और बहन को विराजित कर रथयात्रा निकाली जाती है। उसी तरह छत्तीसगढ़ का भी यह पहला मंदिर है जहां तीन रथ पर यात्रा निकलती है। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’ एवं बड़े भैया बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ तथा बहन सुभद्रा के रथ को ‘देवदलन’ रथ कहा जाता है। सबसे आगे बलरामजी का रथ, बीच में सुभद्राजी का और आखिरी में जगन्नाथजी का रथ निकाला जाता है।
भूतल से काफी ऊंचाई पर स्थित गर्भगृह में विधिवत पूजा-अर्चना के बाद रथ पर विराजित कर भगवान को गायत्री नगर, शंकरनगर, बीटीआई ग्राउंड आदि इलाकों का भ्रमण कराया जाता है। यात्रा के पश्चात मूल मंदिर के नीचे भूतल पर भगवान 10 दिनों के लिए विराजते हैं जिसे मौसी का घर (गुंडिचा मंदिर) कहा जाता है।
मंदिर में मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही महाभारत में उल्लेखित भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता उपदेश का दृश्य पेश करती झांकी आकर्षण का केन्द्र है। पत्थर से निर्मित रथ को खींचते घोड़े और उस पर सारथी के रूप में श्रीकृष्ण और पीछे अर्जुन की प्रतिमा दर्शनीय है।

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